
उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में आज जो हुआ, वो भारतीय लोकतंत्र और धार्मिक व्यवस्थाओं के बीच का परफेक्ट “मिलन समारोह” था। जी हां, मथुरा के श्री बांके बिहारी मंदिर के लिए ट्रस्ट बिल पास हो गया, और भगवान खुद अब ट्रस्ट के मेंबर बनते नज़र आ रहे हैं!
क्या है बांके बिहारी मंदिर निर्माण अध्यादेश?
इस अध्यादेश के जरिए मथुरा के प्रसिद्ध मंदिर के लिए एक नया ट्रस्ट बनाया जाएगा, जो मंदिर के चढ़ावे, दान, प्रॉपर्टीज़ और सेवाओं का मैनेजमेंट करेगा। ट्रस्ट के पास वो अधिकार होंगे, जो आजकल किसी स्टार्टअप के CEO को भी नहीं मिलते।
“प्रसाद से लेकर पोस्ट से आए चेक तक… सब ट्रस्ट के कंट्रोल में!”
कौन-कौन होंगे ट्रस्ट में?
18 सदस्य होंगे –
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11 मनोनीत सदस्य (3 वैष्णव, 3 सनातन, 2 गोस्वामी विशेषज्ञ और 3 प्रतिष्ठित लोग)
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7 पदेन सदस्य (जिलाधिकारी, SSP आदि)
हर ट्रस्टी सनातनी हिंदू होना चाहिए, और कार्यकाल होगा 3 साल। यानि भगवान के घर अब पॉलिसी डॉक्युमेंट के साथ ‘फॉर्मल स्ट्रक्चर’ मिलेगा।
क्या होगा ट्रस्ट का रोल?
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मूर्तियों, आभूषणों, दान और चढ़ावे की देखरेख
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पुजारियों की नियुक्ति और वेतन
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20 लाख तक की संपत्ति का लेन-देन
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दर्शन व्यवस्था, सुरक्षा, त्योहारों का संचालन
पूजा विधि स्वामी हरिदास परंपरा से ही चलेगी, सरकार बीच में “इंटरफेयर” नहीं करेगी — कम से कम पेपर पर तो यही है।
श्रद्धालुओं के लिए क्या बदलेगा?
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सीनियर सिटीज़न और दिव्यांगों के लिए अलग मार्ग
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प्रसाद वितरण की नई व्यवस्था
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होटल, धर्मशाला, गौशाला और एग्जीबिशन रूम
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पेयजल, लाइन मैनेजमेंट, विश्राम स्थल
यानि भगवान के दर्शनों में अब थोड़ा और ताजगी और टॉयलेट सुविधा मिलेगी — श्रद्धा में टेक्नोलॉजी का तड़का!
अध्यादेश को कोर्ट में दी गई चुनौती
बिल पास होते ही कोर्ट की घंटी भी बजी।
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सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को अध्यादेश की वैधता पर सवाल उठाया
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जस्टिस अशोक कुमार की अध्यक्षता में समिति बनाई
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मंदिर के वर्तमान सेवाधिकारियों ने याचिका दायर की
“भगवान का प्रबंधन संविधान के दायरे में होगा या परंपरा के?”
संविधान का हवाला और सरकार की सफाई
अध्यादेश साफ कहता है कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क), 19(1)(6), 25 और 26 के तहत धार्मिक परंपराओं में दखल नहीं होगा। सरकार बस ट्रांसपेरेंसी चाहती है, हवाला नहीं, हवाला सिस्टम को खत्म करना!
मंदिर हो या मंत्रालय, सबको चाहिए मैनेजमेंट
अब तो भगवान भी कह रहे होंगे,
“हे भक्तों! ट्रस्ट मी, अब मेरी सेवा होगी प्रोफेशनल।”
मंदिर की आस्था अब ट्रस्टी की रजिस्ट्री से होकर निकलेगी। भक्तों को सुविधा, सरकार को कंट्रोल, पुजारियों को चिंता और कोर्ट को चाय कम ब्रेक नहीं मिलेगा।
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